जीवनसंवाद : अपने भले होने को बचाना!

महाभारत में तीन प्रकार की लोगों का वर्णन है. पहले साधारण, दूसरे मध्यम, तीसरे उत्तम! साधारण लोग सामान्य बातचीत में भी कड़वी बात करते हैं. मध्यम श्रेणी के लोग कठोर वचन सुनकर कठोर वाणी का प्रयोग करते हैं. उत्तम श्रेणी के लोग किसी भी स्थिति में कठोर वचन का उपयोग नहीं करते.


इस समय जिस तरह से हमारे विचारों में हिंसा बढ़ती जा रही है. हमें इस बात का विचार करना ही होगा कि हम किस श्रेणी में आते हैं. जिस तरह हम लोगों से बात कर रहे हैं, वह केवल हमारे उस क्षण का व्यवहार नहीं होता. बल्कि हम भीतर से कैसे हैं, इसकी एक झलक होती है. अगर हमारा मन तालाब के उस पानी की तरह है, जिसमें केवल एक पत्थर से हलचल मचाई जा सकती है, तो निश्चित रूप से हम ऊपर बताई गई श्रेणियों में सबसे बेहतर में नहीं गिने जाएंगे.


यह तो आदर्श स्थिति की बात हुई. लेकिन जरा सोच कर देखिए, इन दिनों हमारे आसपास अधिकतर लोग साधारण श्रेणी में आ रहे हैं. यह बहुत अधिक चिंताजनक स्थिति है. गुस्से और कुंठा से भरे हुए मन अपने आसपास स्नेह और प्रेम का संचार नहीं कर सकते. प्रेम जितना हमारे व्यवहार में होता है, उससे कहीं अधिक वह मन से झलकता है. इसलिए मन का निरंतर स्पष्ट और साफ होते रहना जरूरी है.


जीवनसंवाद' में हम सबसे अधिक जोर इसी बात पर देते हैं. हम अक्सर अपने व्यवहार को नियंत्रित करते रहते हैं. यह सोच कर कि दूसरों पर इसका क्या असर पड़ेगा. हम भीतर से चाहे जैसे हों, हमें बाहर से अपने आप को दूसरों के अनुकूल दिखाना होता है. इस प्रक्रिया में होता यह है कि हम दो तरह के व्यक्तित्व को रचते जाते हैं. एक वह जिसे दुनिया देखती है, दूसरा वह जो हमारे अंदर है! इसका परिणाम यह होता है कि हमारे बाहर और भीतर में बहुत सारा अंतर आ जाता है.


इसके बाद बात आती है, मध्यम श्रेणी की. जिसे सरल भाषा में आप 'जैसे को तैसा' से समझ सकते हैं. लोग अक्सर ऐसा कहते रहते हैं- 'मैंने उसके साथ वैसा ही किया जैसा उसने मेरे साथ किया.' इससे हम अपने आसपास बदलापुर 'रचते' रहते हैं. जहां केवल यही सिखाया जा रहा है कि बदला लो, वह समाज कैसे हिंसा से बच पाएगा. हिंसा बहुत दूर की चीज नहीं है, यह सबसे पहले हमारे व्यवहार से ही उपजती है. इसलिए व्यवहार और विचार के प्रति सजगता मन के इलाज में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है.


अंत में उत्तम श्रेणी की बात. महाभारत में जिस चीज पर सबसे अधिक जोर दिया गया है, वह है- 'अपने मन को उत्तम श्रेणी का बनाना.' लोग हमसे कैसा व्यवहार कर रहे हैं, इससे हम अपने मन को अप्रभावित रखने के बाद ही इस श्रेणी में प्रवेश कर सकते हैं. अपने मन को तालाब नहीं, समंदर जैसा विशाल और गहरा बनाना होगा. अच्छाई ऐसी चीज़ नहीं है, जिसे छोटी-छोटी बातों के लिए दांव पर लगाया जाता रहे. यह बहुत मुश्किल से हासिल की गई संपत्ति है. इसे उतनी ही सावधानी, सजगता से बचाए रखना है, जैसे आप अपनी दूसरी संपत्ति को बचाए रखते हैं. उनके खयाल में डूबे रहते हैं. ऐसे ही सावधानी से अपने मन और व्यवहार को बचाए रखिए. आप भीतर से निरंतर सुखी होते जाएंगे. भीतर से सुखी आदमी ही दुनिया में सबसे अच्छे और नेक काम करता है.अपने भीतर अच्छाई की आस्था को बचाए रखने से बड़ा निवेश दूसरा नहीं है.