हिंदू धर्म में किसी भी पर्व, त्योहार या शुभ मुहूर्त में काम करने से पहले ज्योतिषियों द्वारा भद्राकाल के बारे में विचार किया जाता है। ज्योतिषियों द्वारा माना गया है कि जब भद्राकाल किसी त्योहार के पर्व काल में रहता है तो उस समय कोई पर्व से जुड़े शुभ और महत्वपूर्ण काम नहीं किए जाते हैं। विद्वानों के अनुसार किसी पर्व काल में भद्रा का आखिरी समय यानी मुख काल को छोड़ देना चाहिए।
भद्रा क्या है
ज्योतिष के अनुसार हर तिथि के 2 भाग होते हैं। जिनको अलग-अलग नाम दिए गए है। जिनके अनुसार कृष्णपक्ष में सप्तमी और चतुर्दशी तिथि के पहले भाग को एवं तृतीया और दशमी तिथि के दूसरे भाग को भद्रा कहा जाता है। इसी तरह शुक्लपक्ष में अष्टमी और पूर्णिमा तिथि के पहले भाग एवं एकादशी और चतुर्थी तिथि के दूसरे भाग को भद्रा कहा जाता है। इसलिए श्रावण माह की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन पर्व एवं फाल्गुन माह की पूर्णिमा पर होलिका दहन के समय भद्रा का विचार किया जाता है।
भद्राकाल में क्या करें और क्या नहीं
भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षा बंधन जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। लेकिन भद्राकाल में स्त्री प्रसंग, यज्ञ करना, स्नान करना, अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना, ऑपरेशन करना, कोर्ट में मुकदमा दायर करना, अग्नि सुलगाना, किसी वस्तु को काटना, भैंस, घोड़ा, ऊंट संबंधी कर्म किए जा सकते हैं। इन कामों में भद्रा दोष का विचार नहीं किया जाता है।
भद्रा काल में क्या-क्या कार्य करना चाहिए
भद्रा काल में केवल शुभ कार्य नहीं किए जा सकते हैं, लेकिन जो काम अशुभ है, लेकिन करना जरूरी है तो उसे भद्रा काल में करना चाहिए ऐसा करने से वह कार्य निश्चित ही अनुकूल परिणाम देता है।
भद्रा में क्रूर कर्म, ऑपरेशन करना, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना, युद्ध, किसी को विष देना, अग्नि कार्य, किसी को कैद करना, विवाद संबंधी काम, शस्त्रों यानी हथियारों का उपयोग, दुश्मन पर जीत के लिए काम और पशु संबंधी काम भद्रा काल के दौरान किए जा सकते हैं।
भद्रा काल के दौरान कौन से काम नहीं किए जाते
भद्रा काल में शुभ काम भूलकर भी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से निश्चित ही अशुभ नतीजे मिलते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भद्रा में विवाह, मुण्डन संस्कार, गृह-प्रवेश, रक्षाबंधन,नया व्यवसाय प्रारम्भ करना, शुभ यात्रा, शुभ उद्देश्य से किए जाने वाले सभी काम भद्रा काल में नही करने चाहिए।